25 September 2016

क्या कर लोगे

–द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

हिला-हिला धीमे पत्तों को
पेड़े इशारा करके बोला
‘उड़ जा चिड़िया‚
उड़ जा चिड़िया
उड़ जा मेरे सिर से चिड़िया’
'देखें क्या कर लोगे मेरा'
फुदक–फुदक कर ऐंठी बैठी
चीं–चीं–चीं कर बोली चिड़िया
‘मार–मार हाथों के चाँटे
तुझको रुला भगा दूँगा मैं
चीं–चीं चीं–चीं बोल उठेगी
‘चाँटे लगने से पहले ही
फुर से उड़ जाऊँगी ऊपर
फिर आ बैठूँगी मैं सिर पर
क्या कर लोगे?’ बोली चिड़िया
‘तब फिर होगी मेरी तेरी
कुश्ती‚ मार भगा दूँगा मैं’
आना इधर भुला दूँगा मैं
कहा पेड़ ने ‘उड़ जा चिड़िया’
‘कुश्ती लड़ने से पहले ही
फिर से उड़ जाऊंगी ऊपर
फिर आ बैठूँगी मैं सिर पर
क्या कर लोगे?’ बोली चिड़िया
चिड़िया की ये बातें सुनकर
चुप था पेड़‚ नहीं था उत्तर
फिर वो अपने हाथ जोड़कर
बोला‚ ‘उड़ जा प्यारी चिड़िया’
अब तक तो तू खड़ा तना था
समझ लिया मुझको अदना था
चीं–चीं करके बोली चिड़िया
जो तुझमें है अपनी ताकत
मुझमें भी है अपनी ताकत‚
सब में अपनी–अपनी ताकत‚
चीं–चीं कर फिर बोली चिड़िया
तेरी भूल यही थी साथी
ना लघु चींटी‚ न बड़ हाथी
फर्ज था कि मैं तुझे बताती
यह कह फुर्र उड़ गई चिड़िया।

-द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

1 comment:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 26 सितम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!