मीरा के भजन में था जाने कौन जादू छुपा
जो कि चुटकी बजाते नाचते गुपाल थे
पल भर भी विलम्ब करना था अचरज
ऐसी मोहिनी सहेजे अश्रु के प्रवाल थे
होकर विभोर किनकाती थी मंजीरा जब
घनस्याम राग में नहाते स्वर-ताल थे
विष के न घूँट कैसे धारते सुधा का रुप
कण्ठ पर अँजुरी लगाये नन्दलाल थे।
-बदन सिंह मस्ताना
जो कि चुटकी बजाते नाचते गुपाल थे
पल भर भी विलम्ब करना था अचरज
ऐसी मोहिनी सहेजे अश्रु के प्रवाल थे
होकर विभोर किनकाती थी मंजीरा जब
घनस्याम राग में नहाते स्वर-ताल थे
विष के न घूँट कैसे धारते सुधा का रुप
कण्ठ पर अँजुरी लगाये नन्दलाल थे।
-बदन सिंह मस्ताना
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